Thursday 31 July 2014

Essay on Ganesh Chaturthi in Hindi | English

Posted by Unknown

Essay on Ganesh Chaturthi in Hindi #1

        आज पूरे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जा रहा है। देश के लगभग सभी शहरों और गांवों में उनकी जगह जगह मूर्तियों की स्थापना की जा रही है। इस अवसर पर गणेशोत्सव मनाया जाता है जिस पर अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। गणेश उत्सव के दौरान होने वाले कार्यक्रमों में लोग बहुत उत्साह से शामिल होते हैं।
भगवान श्रीगणेश ही का हमारे जीवन में कितना धार्मिक महत्व यह इसी बात से समझा जा सकता है कि किसी भी शुभ कार्य के प्रारंभ में उनका स्मरण किया जाता है। इसका कारण उनको भगवान शिव तथा अन्य देवताओं द्वारा दिया गया है वह वरदान है जो उनको अपने बौद्धिक कौशल के कारण मिला था।
    
एक समय देवताओं में अपनी श्रेष्ठता को लेकर होड़ लगी थी। श्रेष्ठ देवता के चयन के लिये यह तय किया गया कि जो इस प्रथ्वी का दौरा सबसे पहले कर लौटेगा वही उसका दावेदार होगा। सारे देवतागण उसके लिये दौड़ पड़े मगर श्री गणेश महाराज अपने माता पिता के पास बैठे अपनी लीला करते रहे। जब बाकी देवताओं के वापस लौटने की संभावना देखी तो तत्काल उठे और अपने माता पिता भगवान शिव और पार्वती की प्रदक्षिणा कर घोषणा की कि उन्होंने तो सारी सृष्टि का दौरा कर लिया क्योंकि भगवान शिव और माता पार्वती ही उनके लिये सृष्टि स्वरूप हैं। उनके इस तर्क को स्वीकार किया गया और यह आशीर्वाद दिया गया कि जो मनुष्य किसी भी शुभ कर्म के प्रारंभ में उनकी छबि की स्थापना करेगा उसे उसका अच्छा फल प्राप्त होगा। उसके बाद से उनको शुभफलदायक माना जाने लगा।
मगर उनका यह रूप सकाम भक्तों के लिये ही सर्वोपरि है जबकि निष्काम तथा ज्ञानी भक्त उनको महाभारत ग्रंथ के लेखक के रूप में भी उनकी याद करते हैं जिसमें सम्मिलित श्रीगीता संदेश बाद में भारतीय अध्यात्म का एक महान स्त्रोत बन गया और जिसा आज पूरा विश्व लोहा मानता है। वैसे महाभारत के रचनाकार तो ऋषि वेदव्यास जी है पर उसकी रचना श्री गणेश महाराज की कलम से ही हुई है।
        श्री गणेशजी का चेहरा हाथी का है और सवारी चूहे की है जो कि उनके भक्तों में विनोद का भाव भी पैदा करता है। उनको यह चेहरा उनके पिता भगवान शिव ने ही दिया जिन्होंने क्रोधवश उसे काट दिया था। एक बार माता पार्वती जी नहा रही थी और उन्होंने अपने पुत्र बालक गणेश को यह निर्देश दिया कि वह दरवाजे पर बैठकर पहरा दें और किसी को घर के अंदर न आने दें। आज्ञाकारी बालक गणेश जी वहीं जम गये। थोड़ी देर बात भगवान शिव आये तो श्री गणेश जी ने उनको अंदर जाने से रोका। पिता पुत्र में विवाद हुआ और भगवान शिव ने अपने ही बेटे का सिर अपने फरसे से काट दिया। बाद में उनको पछतावा हुआ और फिर उनको हाथी का सिर लगाकर पुनः जीवन प्रदान किया गया।
भगवान श्रीगणेश का चरित्र बहुत विशाल है। जब श्री वेदव्यास महाभारत की रचना कर रहे थे तब उन्होंने उसके लेखन के लिये श्रीगणेश जी का स्मरण किया। लिखने के लिये श्रीगणेश जी यह शर्त रखी कि जब तक वेदव्यास की वाणी चलती रहेगी वह लिखते रहेंगे और जब वह रुक जायेगी तो लिखना बंद कर देंगे।
           हमारे अध्यात्म में अनेक भगवान हैं मगर श्री गणेश जी की हस्तलिपि में लिखी गयी श्री मद्भागवत गीता को एक अनुपम ग्रंथ है जिसके कारण सकाम था निष्काम दोनों ही प्रकार के भक्तों में उनको श्रेष्ठ माना जाता है। सकाम भक्ति तथा राजस भाव वाले मनुष्य श्रीमद्भागवत गीता का पूज्यनीय तो मानते हैं पर उसके ज्ञान से यह सोचकर घबड़ाते हैं कि वह उनको सांसरिक कर्म से विरक्त कर देगी। यह उनका वहम है। जबकि इसके विपरीत श्रीमद्भागवत गीता तो निष्काम भक्ति तथा निष्प्रयोजन दया के साथ ही देह, मन और विचारों में शुद्धता लाने का मंत्र बताने वाला एक महान ग्रंथ है और हृदय में पवित्र भाव लाकर उसका अध्ययन करने से जीवन के ऐसे रहस्य हमारे सामने प्रकट हो जाते हैं जो हमारे ज्ञान चक्षु खोल देते हैं। इस संसार वह स्वरूप हमारे सामने आता है जो सामान्य रूप से नहीं दिखता। मूर्तिमान श्रीगणेश जी का वह अमूर्तिमान लेखकीय स्वरूप उन ज्ञानियों को बहुत लुभाता है जो श्री गीता संदेश का महत्व समझते हैं।
            गणेश चतुर्थी के अवसर पर हिन्दी ब्लाग जगत के साथी लेखकों और पाठकों को हार्दिक बधाई तथा शुभ कामनायें। ॐ  नमो गणेशायनमः।

Essay on Ganesh Chaturthi in English

Ganesh Chaturthi is the most awaited festival in state of Maharashtra and karnataka, Infact in whole india it is celebrated with great spirit.It’s an important Hindu festival, celebrated with great prompt and enthusiasm. Ganesh Chaturthi is marked as the birthday of Lord Ganesha or mythologically called – ‘Vigana Harta’ (remover of obstacles). On this day, the devotees of Lord Ganesha, the son of Lord Shiva and Goddess Parvati, offer prayers to their deity and seek his blessings.

The best celebrations associated with Ganesha Chaturthi are usually witnessed in the state of Maharashtra where celebrations stretch across 10 days. The state witnesses celebrations on gigantic proportions, Ganesha pandals (stages) are created and decorated beautifully till the day of Ganesh Murti Visarjan (immersion of Ganesha idols in to the river).

Ganesh Puja

On the festive day these idols are placed in the house holds and public mandaps. Then the ritual of the Pranapratishhtha Pooja is performed to invoke the holy presence of Lord Ganesha into the idol followed by the worship with sixteen modes of showing honor, known as Shhodashopachara. Offering of Durva (grass) blades and modaka, a delicacy prepared from rice flour, jaggery, and coconut, is an important part of the Ganesha Chaturthi puja. Ganesha is also offered red flowers, and anointed with a red chandan.

For next 10 days, the Ganesha temples, each house hold and large mandaps are swayed away by the name of their most loved God Ganesha. On 11th day, the procession ceremony of the immersion of the image/idol in a water body is performed to see-off the lord and praying him to take away all misfortunes and come again next year.

Curse of the Moon

It is said that anyone who looks at the moon on the night of the Ganesh Chaturthi will be falsely accused. If someone inadvertently sees the moon on this night, he/she may remedy the situation by listening to (or reciting) the story of the syamantaka jewel found in the Puranas.

The story is like this. Satrajit had secured a jewel from Surya. When Lord Krishna asked for it, saying it would be safe with him, Satrajit refused to give it. Prasena's brother Satrajit went out hunting wearing the jewel but was killed by a lion. Jambavant, the Ram Bhakt, killed the lion and gave the jewel to his son to play with.

When Prasena did not return, Satrajit falsely accused Krishna of killing Prasena for the sake of the jewel. Krishna did not like the stain on his reputation. He set out in search of the jewel. He found it in Jambavant's cave, with his child.

Jambavant attacked Krishna thinking him to be an intruder who' had come to take away the jewel. They fought each other for 28 days. Jambavant was terribly weakened from the hammering of Krishna's fists. He finally recognised Him as Lord Rama.

Jambavant repented that he had fought with the Lord. He gave the jewel to Krishna. He also gave his daughter Jambavati in marriage to him. Krishna returned to Dwaraka with Jambavati and the jewel.

He returned the jewel to Satrajit. In turn Satraji repented for his false accusation. He promptly offered to give Krishna the jewel and his daughter Satyabhama in marriage. Krishna accepted Satyabhama as his wife but did not accept the jewel.

Some sanskrit shloka of Ganesh Chaturthi

“Vakratunda Mahakaya Suryakoti Samaprabha, Nirvighnam Kuru Me Deva Sarvakaryeshhu Sarvada”
“O Ganesha – Ganapati, One with a curved trunk, a large body, and a brilliance equal to a crore suns! O God, please make all my undertakings free from obstacles always.”


Ganesha, the lord with elephant head riding on a mouse, is mostly loved God of Hindus worshipped for success (Sidhi) in undertakings, and intelligence (budhi). Ganpati is praised before any venture is started and known as the God of education, knowledge and wisdom, literature, and the fine arts.

Essay (#2)number two ends

Essay on Ganesh Chaturthi in Hindi

एक बरस का इंतजार पूरा हुआ और जल्द ही धूम मच जाएगी सालाना गणेशोत्सव की। पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश पृथ्वी पर रहते हैं।

शास्त्रों में दिलचस्पी रखने वाले आचार्य आख्यानंद कहते हैं कि भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है।

गणेशोत्सव की शुरुआत हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भादों माह में शुक्ल चतुर्थी से होती है। इस दिन को गणेश चतुर्थी कहा जाता है। दस दिन तक गणपति पूजा के बाद आती है अनंत चतुर्दशी जिस दिन यह उत्सव समाप्त होता है। पूरे भारत में गणेशोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

गणपति उत्सव का इतिहास वैसे तो काफी पुराना है लेकिन इस सालाना घरेलू उत्सव को एक विशाल, संगठित सार्वजनिक आयोजन में तब्दील करने का श्रेय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य तिलक को जाता है।

इतिहास के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. यूजी गुप्ता ने बताया ‘सन् 1893 में तिलक ने ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के बीच की दूरी खत्म करने के लिए ऐलान किया कि गणेश भगवान सभी के देवता हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने गणेशोत्सव के सार्वजनिक आयोजन किए और देखते ही देखते महाराष्ट्र में हुई यह शुरुआत देश भर में फैल गई। यह प्रयास एकता की एक मिसाल साबित हुआ।’


प्रो. गुप्ता ने कहा कि एकता का यह शंखनाद महाराष्ट्रवासियों को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एकजुट करने में बेहद कारगर साबित हुआ। तिलक ने ही मंडपों में गणेश की बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना को प्रोत्साहन दिया। गणेश चतुर्थी के दसवें दिन गणेश विसर्जन की परंपरा भी उन्होंने शुरू की। 

इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वाली प्रो. अमिया गांगुली ने बताया ‘अंग्रेज हमेशा सामाजिक और राजनीतिक आयोजनों के खिलाफ रहते थे। लेकिन गणेशोत्सव के दौरान हर वर्ग के लोग एकत्रित होते और तरह तरह की योजनाएं बनाई जातीं। स्वतंत्रता की अलख जगाने में इस उत्सव ने अहम भूमिका निभाई।’ गणेशोत्सव का सिलसिला अभी भी जारी है और इसकी तैयारियां महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। 

मूर्तिकार जहां विघ्नहर्ता की आकषर्क मूर्तियां बनाते हैं, वहीं आयोजक चंदा एकत्र कर मंडप स्थापित करते हैं। मूर्तियों का आकार और उनकी कीमत दिनों दिन बढ़ती गई और साथ ही बढ़ता गया इस उत्सव के प्रति लोगों का उत्साह।

पंडित आख्यानंद कहते हैं ‘रोशनी, तरह तरह की झांकियों, फूल मालाओं से सजे मंडप में गणेश चतुर्थी के दिन पूजा अर्चना, मंत्रोच्चार के बाद गणपति स्थापना होती है। यह रस्म षोडशोपचार कहलाती है। भगवान को फूल और दूब चढ़ाए जाते हैं तथा नारियल, खांड, 21 मोदक का भोग लगाया जाता है। 

दस दिन तक गणपति विराजमान रहते हैं और हर दिन सुबह शाम षोडशोपचार की रस्म होती है। 11वें दिन पूजा के बाद प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। कई जगहों पर तीसरे, पांचवे या सातवें दिन गणेश विसर्जन किया जाता है।’ (भाषा)
End of essay #3

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